बुत-कदे से चले हो काबे को
क्या मिलेगा तुम्हें ख़ुदा के सिवा
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(902) Peoples Rate This
अभी मीआद बाक़ी है सितम की
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
हाँ कैफ़-ए-बे-ख़ुदी की वो साअत भी याद है
रक़्क़ासा
निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए
उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ
कम-बख़्त दिल बुरा हुआ तिरी आह आह का
जो मिरे दिल में है कहने दीजिए
जिस ने इस दौर के इंसान किए हैं पैदा
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
फिर लुत्फ़-ए-ख़लिश देने लगी याद किसी की
तौबा तौबा शैख़ जी तौबा का फिर किस को ख़याल