बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं
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सुपुर्द-ए-ख़ाक ही करना था मुझ को
हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ
आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रो कर
बुत कहते हैं मर जा मर जा
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
अभी तो मैं जवान हूँ
तौबा-नामा
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
इश्क़ के हाथों ये सारी आलम-आराई हुई
ज़िंदगी और मिले और मिले और मिले
हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा
या ख़ादिम-ए-दीं होना या मज़हर-ए-दीं होना