या ख़ादिम-ए-दीं होना या मज़हर-ए-दीं होना
या तख़्त-नशीं होना या ख़ाक-नशीं होना
जब कुछ भी नहीं करना जब कुछ भी नहीं होना
इस नंग से बेहतर है पैवंद-ए-ज़मीं होना
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात
मुझ को न सुना ख़िज़्र ओ सिकंदर के फ़साने
मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं
मदफ़न-ए-ग़रीबाँ है आओ फ़ातिहा पढ़ लें
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
हाँ कैफ़-ए-बे-ख़ुदी की वो साअत भी याद है
सोने वालो जागो
इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया
शाएर
पार उतरा हूँ किस क़रीने से
पिए जा
ये और दौर है अब और कुछ न फ़रमाए