नदी Poetry (page 54)

गोश्त की सड़कों पर

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

साँस की आँच ज़रा तेज़ करो

आदिल मंसूरी

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

आदिल मंसूरी

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब

अदीम हाशमी

कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक

अदीम हाशमी

तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए

अदीम हाशमी

तमाम उम्र की तन्हाई की सज़ा दे कर

अदीम हाशमी

सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है

अदीम हाशमी

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

अदीम हाशमी

हम बहर-ए-हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते

अदीम हाशमी

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

अदीम हाशमी

बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई

अदीम हाशमी

वो लम्हा जो मेरा था

अदा जाफ़री

आशोब-ए-आगही

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई

अदा जाफ़री

शब को हर रंग में सैलाब तुम्हारा देखें

अबुल हसनात हक़्क़ी

दिल को हम दरिया कहें मंज़र-निगारी और क्या

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

अबु मोहम्मद सहर

ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला

अबु मोहम्मद सहर

न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया

आबरू शाह मुबारक

किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

दिल है तिरे प्यार करने कूँ

आबरू शाह मुबारक

न पूछो जान पर क्या कुछ गुज़रती है ग़म-ए-दिल से

अबरार शाहजहाँपुरी

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

अबरार अहमद

जब से दरिया में है तुग़्यानी बहुत

आबिद वदूद

कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है

आबिद मलिक

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