नदी Poetry (page 53)

मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला

अहमद फ़राज़

कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी

अहमद फ़राज़

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

उन से भी पूछिए कभी अपनी ज़मीं का कर्ब

अहमद अज़ीम

ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए

अहमद अज़ीम

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

वैलेंटाइन-डे

अहमद आज़ाद

जो मेरे मरने का तमाशा नहीं देखना चाहती

अहमद आज़ाद

ज़मीं वालों की बस्ती में सुकूनत चाहती है

अहमद अशफ़ाक़

जोखम ऐ मर्दुम-ए-दीदा है समझ के रोना

आग़ा हज्जू शरफ़

चुप रहे तो शहर की हंगामा आराई मिली

अफ़ज़ल मिनहास

डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक

अफ़ज़ल ख़ान

कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए

अफ़ज़ल ख़ान

ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले

अफ़ज़ल गौहर राव

तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है

अफ़ज़ल गौहर राव

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

देर तक रात अँधेरे में जो मैं ने देखा

आफ़ताब शम्सी

रिज़्क़ का जब नादारों पर दरवाज़ा बंद हुआ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

ये रेग-ए-रवाँ याद-दहानी तो नहीं क्या

आफ़ताब अहमद

उम्र-ए-रफ़्ता मैं तिरे हाथ भी क्या आया हूँ

आफ़ताब अहमद

क्या बताएँ हाल-ए-दिल उन की शनासाई के ब'अद

अफ़सर माहपुरी

शबनम की तरह सुब्ह की आँखों में पड़ा है

अफ़रोज़ आलम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

सितारा सो गया है

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

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