डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
भँवर के बीच हूँ दरिया के पार होते हुए
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तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है