इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
गाँव की जितनी भी आबादी है आबादी नहीं
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(785) Peoples Rate This
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैं
दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानी