भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
हाँ मगर तुझ से ख़रीदार को ना कैसे हो
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तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
हमारे साँस भी ले कर न बच सके अफ़ज़ल
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो