हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
यूँही बाज़ार आए हैं ख़रीदारी नहीं करनी
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वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर
हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज