कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

हम कहीं हैं कि नहीं हैं कोई चर्चा न करे

रात अफ़्सूँ है कहीं का नहीं रहने देती

दिन को सोए न कोई रात को जागा न करे

हम निकल आए हैं अब धूप में जलने के लिए

कोई बादल नहीं भेजे कोई साया न करे

अन-गिनत आँखों में हम जलते रहे बुझते रहे

अब भले ख़्वाब हमारा कोई देखा न करे

हम ने इक शहर बसा रक्खा है दीवारों में

काम जो दिल ने किया चश्म-ए-तमाशा न करे

कोई अब जा के ज़रा देखे तो उस मिट्टी को

ऐसे सैराब किया है कोई दरिया न करे

गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है

फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया न करे

हम उसे रंज-ए-तमन्ना से तो भर सकते हैं

और ये दिल है कि अब कोई तक़ाज़ा न करे

वार करना है अगर हम पे तो वो खुल कर आए

और भूले से भी ये काम वो तन्हा न करे

(1230) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare In Hindi By Famous Poet Abrar Ahmad. Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare is written by Abrar Ahmad. Complete Poem Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare in Hindi by Abrar Ahmad. Download free Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare Poem for Youth in PDF. Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare is a Poem on Inspiration for young students. Share Koi Soche Na Hamein Koi Pukara Na Kare with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.