जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे
जाने यूँ है भी कि ऐसा नज़र आता है मुझे
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ये भी तो कमाल हो गया है
मिट्टी थी किस जगह की
पिछले पहर की दस्तक
आख़िरी दिन से पहले
हवा जब तेज़ चलती है
मुझे डर लगता है
मजीद-अमजद के लिए
कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है
मौत दिल से लिपट गई उस शब
मरकज़-ए-जाँ तो वही तू है मगर तेरे सिवा
गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़