नदी Poetry (page 35)

जाने क्या ऐसा उसे मुझ में नज़र आया था

फ़र्रुख़ जाफ़री

सिलसिले ख़्वाब के अश्कों से सँवरते कब हैं

फ़ारूक़ शमीम

वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर

फ़ारूक़ शफ़क़

दिन को थे हम इक तसव्वुर रात को इक ख़्वाब थे

फ़ारूक़ शफ़क़

जब भी तुम को सोचा है

फ़ारूक़ नाज़की

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था

फ़ारूक़ मुज़्तर

क़ुर्बतें बढ़ गई निगाहों की

फ़ारूक़ मुज़्तर

ख़ुदा करे कि ये मिट्टी बिखर भी जाए अब

फ़ारूक़ बख़्शी

जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है

फ़ारूक़ अंजुम

जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया

फ़ारूक़ अंजुम

हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं

फरीहा नक़वी

सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

अपने दरिया की प्यास

फ़ारिग़ बुख़ारी

कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते

फ़ारिग़ बुख़ारी

हवास लूट लिए शोरिश-ए-तमन्ना ने

फ़ारिग़ बुख़ारी

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है

फ़रहत एहसास

ख़ुद-आगही

फ़रहत एहसास

वस्ल की रात में हम रात में बह जाते हैं

फ़रहत एहसास

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

फ़रहत एहसास

उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते

फ़रहत एहसास

ठोकरें खा के सँभलना नहीं आता है मुझे

फ़रहत एहसास

साँसें ना-हमवार मिरी

फ़रहत एहसास

मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है

फ़रहत एहसास

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

फ़रहत एहसास

कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना

फ़रहत एहसास

ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है

फ़रहत एहसास

ख़ाना-साज़ उजाला मार

फ़रहत एहसास

जिस्म के पार वो दिया सा है

फ़रहत एहसास

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