दस्तक Poetry (page 2)

किरन इक मो'जिज़ा सा कर गई है

स्वप्निल तिवारी

कब करोगे हमारा इस्तिक़बाल

सुबोध लाल साक़ी

सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक

सिराज औरंगाबादी

अजनबी राह-गुज़र

सिद्दीक़ कलीम

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

सँभला नहीं दिल तुझ से बिछड़ कर कई दिन तक

शाज़ तमकनत

जाने क्या क़ीमत-ए-अरबाब-ए-वफ़ा ठहरेगी

शाज़ तमकनत

तलाश जिन की है वो दिन ज़रूर आएँगे

शरीफ़ कुंजाही

रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक

शमीम जयपुरी

कब सुनी तुम ने रागनी मेरी

शाइस्ता सहर

आज लगता है समुंदर में है तुग़्यानी सी

शाइस्ता मुफ़्ती

हम जो दस्तक कभी देते थे सबा की मानिंद

शहज़ाद अहमद

न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे

शहज़ाद अहमद

वापसी

शहरयार

ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें

शहरयार

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई

शहरयार

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

बात कोई एक पल उस के ध्यान के आने की थी

शाहिदा हसन

चेहरों में नज़र आएँ आँखों में उतर जाएँ

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

याद उस की है कुछ ऐसी कि बिसरती भी नहीं

शहाब जाफ़री

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

नज़्म

शबनम अशाई

बेवफ़ाई से वफ़ाओं का सिला मत देना

सीन शीन आलम

सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो

सरफ़राज़ ख़ालिद

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं

सरफ़राज़ ख़ालिद

तीसरी बारिश से पहले

समीना राजा

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे

सलीम कौसर

बस लौट आना

सलीम फ़िगार

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

सलीम अहमद

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