दस्तक Poetry (page 3)

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

वो अब्र साया-फ़गन था जो रहमतों की तरह

सैफ़ अली

है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं

साग़र सिद्दीक़ी

उस्ताद मर गए

साग़र ख़य्यामी

वो चीर के आकाश ज़मीं पर उतर आया

सादिक़

देखो ऐसा अजब मुसाफ़िर फिर कब लौट के आता है

साबिर वसीम

नाव काग़ज़ की सही कुछ तो नज़र से गुज़रे

सादुल्लाह कलीम

अब के मिले तो हम दोनों ही

रेनू नय्यर

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

रज़िया फ़सीह अहमद

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

तेरे हाथों जो सर-अफ़राज़ हुए

राशिद मुफ़्ती

ज़िंदगी जो कह न पाई रह गई

राशिद आज़र

फ़ासला रक्खो ज़रा अपनी मुदारातों के बीच

राशिद आज़र

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

अशआर रंग रूप से महरूम क्या हुए

राज नारायण राज़

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इरम ज़ेहरा

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई

इक़बाल साजिद

दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है

इक़बाल अशहर

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

पहले दरवाज़े पे दस्तक दे लूँ

इकराम तबस्सुम

मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा

इकराम तबस्सुम

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

इफ़्तिख़ार राग़िब

शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं

इफ़्तिख़ार नसीम

एक कहानी बहुत पुरानी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

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