दीद Poetry (page 2)

कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या

उमर अंसारी

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

हर रस्म पर नज़र को झुकाते हुए चले

तलअत इशारत

आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़

ताहिर अदीम

लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख

तअशशुक़ लखनवी

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद

सय्यद ज़मीर जाफ़री

कैफ़-ए-सफ़र अब अपना हासिल

सय्यद सिद्दीक़ हसन

ज़ुल्म मुझ पर शदीद कर बैठे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

इश्क़ तज्दीद कर के देखते हैं

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

तू मुझ को चाहता है इस मुग़ालते में रहूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

तड़प भी है मिरी और बाइस-ए-सुकूँ भी है

सय्यद काशिफ़ रज़ा

निगह की शोला-फ़ज़ाई को कम है दीद उस की

सय्यद काशिफ़ रज़ा

मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी

सय्यद हामिद

लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए

सय्यद अमीन अशरफ़

कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर

सय्यद अमीन अशरफ़

बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता

सय्यद अमीन अशरफ़

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई

सुल्तान अख़्तर

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

सुलैमान अरीब

हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बाद

सुहैल अहमद ज़ैदी

पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है

सुहैल अहमद ज़ैदी

ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे

सुहा मुजद्ददी

मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है

सिराज लखनवी

प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था

सिद्दीक़ मुजीबी

कुछ ऐसी टूट के शहर-ए-जुनूँ की याद आई

सिद्दीक़ शाहिद

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