देख Poetry (page 49)

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में

हफ़ीज़ बनारसी

रात का नाम सवेरा ही सही

हफ़ीज़ बनारसी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं

हादी मछलीशहरी

देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को

हादी मछलीशहरी

नन्ही जा सो जा

हबीब जालिब

माँ

हबीब जालिब

ऐ जहाँ देख ले!

हबीब जालिब

अहद-ए-सज़ा

हबीब जालिब

शे'र होता है अब महीनों में

हबीब जालिब

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ

हबीब जालिब

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम

हबीब जालिब

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

हबीब जालिब

'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं

हबीब जालिब

मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है

हबीब मूसवी

वो यूँ शक्ल-ए-तर्ज़-ए-बयाँ खींचते हैं

हबीब मूसवी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं

हबीब मूसवी

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

हबीब मूसवी

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

हबीब मूसवी

जिस को देखो शाम-सवेरे बे-कल है

हबीब कैफ़ी

गर मैं नहीं तो दर्द का पैकर कोई तो है

हबीब कैफ़ी

इंसान की बुलंदी ओ पस्ती को देख कर

हबीब हैदराबादी

हम अहल-ए-आरज़ू पे अजब वक़्त आ पड़ा

हबीब हैदराबादी

पहलू में इक नई सी ख़लिश पा रहा हूँ मैं

हबीब अशअर देहलवी

दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ

हबाब तिर्मिज़ी

आज उन्हें देख लिया बज़्म में फ़र्ज़ानों की

हबाब तिर्मिज़ी

ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है

ग्यान चन्द मंसूर

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