देख Poetry (page 86)

नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म

अब्दुल अहद साज़

सबक़ उम्र का या ज़माने का है

अब्दुल अहद साज़

मेरी आँखों से गुज़र कर दिल ओ जाँ में आना

अब्दुल अहद साज़

मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है

अब्दुल अहद साज़

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे

अब्बास ताबिश

वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता

अब्बास ताबिश

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं

अब्बास ताबिश

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

अब्बास ताबिश

कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है

अब्बास ताबिश

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर

अब्बास अली ख़ान बेखुद

किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना

अब्बास अली ख़ान बेखुद

इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी

अातिश बहावलपुरी

हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम

अातिश बहावलपुरी

आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं

अातिश बहावलपुरी

बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'

आसी उल्दनी

उन को मैं ने अपना कहा है

आसी रामनगरी

किस को देखा उन की सूरत देख कर

आसी ग़ाज़ीपुरी

ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ

आसी ग़ाज़ीपुरी

तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ

आसी ग़ाज़ीपुरी

कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए

आसी ग़ाज़ीपुरी

ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मैं हूँ हैराँ ये सिलसिला क्या है

आस मोहम्मद मोहसिन

हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो

आनिस मुईन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

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