धूप Poetry (page 12)

हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है

शहरयार

ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते

शहरयार

मान-सरोवर

शहनाज़ नबी

मैं ज़हर रही हर शाम रही

शाहिदा तबस्सुम

सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है

शाहिदा हसन

ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा

शाहिद मीर

कुछ दर्द बढ़ा है तो मुदावा भी हुआ है

शाहिद माहुली

दूर सहरा में जहाँ धूप शजर रखती है

शाहिद लतीफ़

तिरी थकी हुई आँखों में ख़्वाब था कि नहीं

शाहिद कलीम

ये हम कौन हैं

शाहीन मुफ़्ती

सिक्का पानी और सितारा

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

दुनिया ने बस थका ही दिया काम कम हुए

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

अहल-ए-दुनिया के लिए ये माजरा है मुख़्तलिफ़

शाहीन बद्र

वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया

शहबाज़ ख़्वाजा

शहर-ए-अना में

शहाब जाफ़री

इस धूप से क्या गिला है मुझ को

शहाब जाफ़री

हयात में भी अजल का समाँ दिखाई दे

शहाब जाफ़री

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

पानियों से रेत पर जो आ गया मेरी तरह

शफ़ीउल्लाह राज़

रुकूँ तो रुकता है चलने पे साथ चलता है

शफ़ीक़ सलीमी

तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे

शफ़ीक़ जौनपुरी

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

सरों पे साया ग़ुबार-ए-सफ़र के जैसा है

शफ़क़ सुपुरी

वो मय-परस्त हूँ बदली न जब नज़र आई

शाद लखनवी

दुनिया भी अजब हसीन ज़न है

शाद लखनवी

दुनिया भी अजब हसीन ज़न है

शाद लखनवी

पी रहा है ज़िंदगी की धूप कितने प्यार से

शबनम नक़वी

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

बहार की धूप में नज़ारे हैं उस किनारे

शब्बीर शाहिद

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