धूप Poetry (page 11)

तुम्हारे चाक पर ऐ कूज़ा-गर लगता है डर हम को

शमीम हनफ़ी

तीरगी चाँद को इनआम-ए-वफ़ा देती है

शमीम हनफ़ी

परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख

शमीम हनफ़ी

किताब पढ़ते रहे और उदास होते रहे

शमीम हनफ़ी

कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है

शमीम हनफ़ी

न संग-ए-राह न सद्द-ए-क़ुयूद की सूरत

शाम रिज़वी

किसी की आँख से आँसू टपक रहे होंगे

शकील शम्सी

शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा

शकील जमाली

दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है

शकील जमाली

अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए

शकील जमाली

कहीं से चाँद कहीं से क़ुतुब-नुमा निकला

शकील आज़मी

जाती है धूप उजले परों को समेट के

शकेब जलाली

शफ़क़ जो रू-ए-सहर पर गुलाल मलने लगी

शकेब जलाली

मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से

शकेब जलाली

जाती है धूप उजले परों को समेट के

शकेब जलाली

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है

शकेब जलाली

ग़म-ए-दिल हीता-ए-तहरीर में आता ही नहीं

शकेब जलाली

आया है हर चढ़ाई के बा'द इक उतार भी

शकेब जलाली

मौत मेरी सखी

शाइस्ता हबीब

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना

शहज़ाद अहमद

बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक

शहज़ाद अहमद

एक दरख़्त

शहज़ाद अहमद

वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम

शहज़ाद अहमद

इसी बाइस ज़माना हो गया है उस को घर बैठे

शहज़ाद अहमद

बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर

शहज़ाद अहमद

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले

शहज़ाद अहमद

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