धूप Poetry (page 35)

कोई अच्छी सी ग़ज़ल कानों में मेरे घोल दे

आफ़ताब शम्सी

मिसाल-ए-सैल-ए-बला न ठहरे हवा न ठहरे

आफ़ताब इक़बाल शमीम

जब चाहा ख़ुद को शाद या नाशाद कर लिया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

टूटी लज़्ज़त की ख़ुशबू

आदिल मंसूरी

सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई

आदिल मंसूरी

बेबसी की धूप है ग़मगीन क्या

आदिल हयात

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

क्यूँ मिरे लब पे वफ़ाओं का सवाल आ जाए

अदीम हाशमी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

तुम जो सियाने हो गुन वाले हो

अदा जाफ़री

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

आलम ही और था जो शनासाइयों में था

अदा जाफ़री

आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था

अदा जाफ़री

गया तो हुस्न न दीवार में न दर में था

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

पस-मंज़र की आवाज़

अबरार अहमद

मिट्टी थी किस जगह की

अबरार अहमद

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

अबरार अहमद

मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'

आबिद वदूद

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