मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'
सुलगती धूप में इक छत बहुत ज़रूरी है
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(804) Peoples Rate This
जब से दरिया में है तुग़्यानी बहुत
फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप
यज़ीद-ए-वक़्त ने अब के लगाई है क़दग़न
सब अपने अपने तरीक़े से भीक माँगते हैं
तेरी दुनिया की कज-अदाई से
अब क़फ़स और गुलिस्ताँ में कोई फ़र्क़ नहीं
शहर ये सायों का है इस में बनी-आदम कहाँ
इस ए'तिबार पे काटी है हम ने उम्र-ए-अज़ीज़
मगर ये तीरगी जाने का नाम लेती नहीं
हाथ में माहताब हो जैसे