धूप Poetry (page 33)
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
अहमद ज़िया
मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना
अहमद ज़िया
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
अहमद ज़िया
सुब्ह-ए-वजूद हूँ कि शब-ए-इंतिज़ार हूँ
अहमद शनास
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का
अहमद शनास
वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है
अहमद शहरयार
शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो
अहमद सलमान
फ़ड़फ़ड़ाता हुआ परिंदा है
अहमद सज्जाद बाबर
और सी धूप घटा और सी रक्खी हुई है
अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी
आँखें बनाता दश्त की वुसअत को देखता
अहमद रिज़वान
कल और आज
अहमद राही
रेस्तोराँ
अहमद नदीम क़ासमी
एक नज़्म
अहमद नदीम क़ासमी
इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा
अहमद नदीम क़ासमी
अजीब रंग तिरे हुस्न का लगाव में था
अहमद नदीम क़ासमी
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
अहमद मुश्ताक़
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
अहमद मुश्ताक़
जाने किस दम निकल आए तिरे रुख़्सार की धूप
अहमद मुश्ताक़
हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'
अहमद मुश्ताक़
ये हम ग़ज़ल में जो हर्फ़-ओ-बयाँ बनाते हैं
अहमद मुश्ताक़
पता अब तक नहीं बदला हमारा
अहमद मुश्ताक़
मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया
अहमद मुश्ताक़
लुभाता है अगरचे हुस्न-ए-दरिया डर रहा हूँ मैं
अहमद मुश्ताक़
किस झुटपुटे के रंग उजालों में आ गए
अहमद मुश्ताक़
हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है
अहमद मुश्ताक़
दुनिया में सुराग़-ए-रह-ए-दुनिया नहीं मिलता
अहमद मुश्ताक़
चाँद इस घर के दरीचों के बराबर आया
अहमद मुश्ताक़
बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता
अहमद मुश्ताक़
अश्क दामन में भरे ख़्वाब कमर पर रक्खा
अहमद मुश्ताक़
बदन-सराब न दरिया-ए-जाँ से मिलता है
अहमद महफ़ूज़
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