धूप Poetry (page 19)

ताराज ख़्वाहिशों का मुदावा न हो सका

इम्तियाज़ अहमद

वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

दुपट्टा वो गुलनार दिखला गए

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए

इमाम अाज़म

समझाने वालों ने कितना उन को समझाया लोगो

इलियास इश्क़ी

हमारे दिन गुज़र गए

इलियास बाबर आवान

दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में

इफ़्तिख़ार नसीम

सूरज नए बरस का मुझे जैसे डस गया

इफ़्तिख़ार नसीम

नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह

इफ़्तिख़ार नसीम

भर आईं आँखें किसी भूली याद से शाम के मंज़र में

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

क़ुर्बान जाऊँ हुस्न-ए-क़मर इंतिसाब के

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

इदरीस बाबर

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

इब्राहीम अश्क

ग़ज़ल हो गई जब भी सोचा तुम्हें

इब्राहीम अश्क

ये कौन आया

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

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