धूप Poetry (page 20)

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

ज़रा सी बात पर नाराज़ होना रंजिशें करना

हुमैरा रहमान

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल

होश तिर्मिज़ी

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा

हज़ीं लुधियानवी

कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए

हयात रिज़वी अमरोहवी

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला

हसनैन जाफ़री

वक़्त का सूरज जलन के रूप में जब आ गया

हसीर नूरी

ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है

हसीब सोज़

नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए

हसीब सोज़

अमीर-ए-शहर से मिल कर सज़ाएँ मिलती हैं

हसीब सोज़

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में

हसन रिज़वी

मुँह अपनी रिवायात से फेरा नहीं करते

हसन रिज़वी

इस दर्जा मेरी ज़ात से उस को हसद हुआ

हसन रिज़वी

मैं घर से ज़ेहन में कुछ सोचता निकल आया

हसन निज़ामी

मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा

हसन नईम

कितनी मुश्किल से बहला था ये क्या कर गई शाम

हसन कमाल

कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे

हसन कमाल

कमाँ उठाओ कि हैं सामने निशाने बहुत

हसन अज़ीज़

फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें

हसन अख्तर जलील

ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है

हसन अकबर कमाल

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