धूप Poetry (page 22)

ऊँचे दर्जे का सैलाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

कैसा होगा देस पिया का कैसा पिया का गाँव रे

ग़ौस सीवानी

तुम आओगे

गीताञ्जलि राय

कि इस से पहले ख़िज़ाँ का शिकार हो जाऊँ

गौतम राजऋषि

मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो

गौहर होशियारपुरी

है जो भी जज़ा सज़ा अता हो

गौहर होशियारपुरी

न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख

फ़िरदौस गयावी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर

फ़ज़्ल ताबिश

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया

फ़ज़्ल ताबिश

सरहदें

फ़ाज़िल जमीली

मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं

फ़ाज़िल जमीली

अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे

फ़ाज़िल जमीली

ख़बर मुझ को नहीं मैं जिस्म हूँ या कोई साया हूँ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं ही इक शख़्स था यारान-ए-कुहन में ऐसा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

लहू हमारी जबीं का किसी के चेहरे पर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

छाँव को तकते धूप में चलते एक ज़माना बीत गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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