धूप Poetry (page 24)

तेरा भला हो तू जो समझता है मुझ को ग़ैर

फ़रहत एहसास

सब लज़्ज़तें विसाल की बेकार करते हो

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए

फ़रहत एहसास

मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ

फ़रहत अब्बास शाह

तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं

फ़रहत अब्बास शाह

जल्वा है वो कि ताब-ए-नज़र तक नहीं रही

फ़रहत अब्बास

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

कभी तुम भीगने आना मिरी आँखों के मौसम में

फ़रह इक़बाल

वो पहले अंधे कुएँ में गिराए जाते हैं

फख्र ज़मान

मुश्किल से चमन में हमें एक बार मिला फूल

फख्र ज़मान

जो धूप की तपती हुई साँसों से बची सोच

फख्र ज़मान

मिरे वजूद को मौजूदगी दिखाती थी

फ़ैज़ान हाशमी

तमाम हुस्न-ओ-मआ'नी का रंग उड़ने लगा

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

जब तेरी समुंदर आँखों में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात सितारों वाली थी और धूप भरा था दिन

फ़ैसल अजमी

इन लोगों में रहने से हम बेघर अच्छे थे

फ़ैसल अजमी

हर शख़्स परेशान है घबराया हुआ है

फ़ैसल अजमी

अदावतों में जो ख़ल्क़-ए-ख़ुदा लगी हुई है

फ़ैसल अजमी

उस का दिल तो अच्छा दिल था

फ़हमीदा रियाज़

अक़्लीमा

फ़हमीदा रियाज़

नहीं हो तुम तो ऐसा लग रहा है

फ़हमी बदायूनी

मौत की सम्त जान चलती रही

फ़हमी बदायूनी

किसी के दिल में उतरना है कार-ए-ला-हासिल

फ़हीम शनास काज़मी

ज़मीं ख़्वाब ख़ुश्बू

फ़हीम शनास काज़मी

सब्र की चादर तह कर दी

फ़हीम शनास काज़मी

मुझे कौन बुलाता रहता है

फ़हीम शनास काज़मी

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

रस्ते में शाम हो गई क़िस्सा तमाम हो चुका

फ़हीम शनास काज़मी

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