धूप Poetry (page 25)

हम एक दिन निकल आए थे ख़्वाब से बाहर

फ़हीम शनास काज़मी

ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है

फ़ाएज़ देहलवी

तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना

एज़ाज़ अहमद आज़र

गले लग कर मिरे वो जाने हँसता था कि रोता था

एजाज़ उबैद

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

बे-नियाज़-ए-सौत-ओ-महरूम-ए-बयाँ रक्खा गया

एजाज़ अासिफ़

मुहाजिर

एजाज़ अहमद एजाज़

मेरी मौत के मसीहा!

एजाज़ अहमद एजाज़

तुझे पसंद जो दिल की लगन नहीं आई

एहतिशाम हुसैन

कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर

एहसान दानिश

जो अना की सिफ़त है ज़ाती है

डॉक्टर आज़म

सियाह ज़ुल्फ़ को जो बन-सँवर के देखते हैं

दिलावर फ़िगार

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

काश

दर्शिका वसानी

राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी

दर्शन सिंह

जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं

दाग़ देहलवी

ये हादसा मिरी आँखों से गर नहीं होता

चित्रांश खरे

ख़त्म है बादल की जब से साएबानी धूप में

चाँदनी पांडे

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

पंछी ते परदेसी.....

बुशरा एजाज़

ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी

बिलाल अहमद

सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर

भारत भूषण पन्त

सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे

भारत भूषण पन्त

पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया

भारत भूषण पन्त

मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं

भारत भूषण पन्त

ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए

भारत भूषण पन्त

नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा

बेकल उत्साही

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

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