धूप Poetry (page 26)

फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम

बशीर बद्र

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई

बशीर बद्र

ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए

बशीर बद्र

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

बशीर बद्र

मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा

बशीर बद्र

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते

बशीर बद्र

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

बशीर बद्र

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी

बशीर बद्र

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा

बशीर बद्र

मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा

बाक़ी सिद्दीक़ी

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है

बाक़ी सिद्दीक़ी

अपनी धूप में भी कुछ जल

बाक़ी सिद्दीक़ी

ऐ कहकशाँ-नवाज़ मुक़द्दर उजाल दे

बाक़र नक़वी

दश्त-ए-वफ़ा में ठोकरें खाने का शौक़ था

बाक़र मेहदी

ड्रग स्टोर

बलराज कोमल

कहीं भी ज़िंदगी अपनी गुज़ार सकता था

लराज बख़्शी

ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है

बद्र-ए-आलम ख़लिश

वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को

बद्र वास्ती

टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा

बदनाम नज़र

जो झुक के मिलते थे जलसों में मेहरबाँ की तरह

बदनाम नज़र

जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

मसअले ज़ेर-ए-नज़र कितने थे

अज़रा वहीद

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