दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी
दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी
सामने है भरा बाज़ार अभी
आदमी साथ नहीं दे सकता
तेज़ है साए की रफ़्तार अभी
ये कड़ी धूप ये रंगों की फुवार
है तिरा शहर पुर-असरार अभी
दिल को यूँ थाम रखा है जैसे
बैठ जाएगी ये दीवार अभी
आँच आती है सबा से 'बाक़ी'
क्या कोई गुल है शरर-बार अभी
(788) Peoples Rate This