कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
इश्क़ में हाथ क्या ख़ज़ाने लगे
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दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी
बंद कलियों की अदा कहती है
क्या पता हम को मिला है अपना
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
एक दीवार उठाने के लिए
दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है
तेरे ग़म से तो सुकून मिलता है
एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे
वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए