एक दीवार उठाने के लिए
एक दीवार गिरा देते हैं
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तारे दर्द के झोंके बन कर आते हैं
वो अंधेरा है जिधर जाते हैं हम
यही रस्ता है अब यही मंज़िल
पहले हर बात पे हम सोचते थे
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
तुम भी उल्टी उल्टी बातें पूछते हो
तुझ को देखा तिरे वादे देखे
एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा