एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
बैठने में जहाँ ज़माने लगे
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वो अंधेरा है जिधर जाते हैं हम
राज़-ए-सर-बस्ता है महफ़िल तेरी
दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है
यूँ भी होने का पता देते हैं
तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ
कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
इस बदलते हुए ज़माने में
तारे दर्द के झोंके बन कर आते हैं
एक दीवार उठाने के लिए
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो
मरहले ज़ीस्त के आसान हुए