राज़-ए-सर-बस्ता है महफ़िल तेरी
जो समझ लेगा वो तन्हा होगा
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यूँ भी होने का पता देते हैं
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
ऐसा वार पड़ा सर का
कान पड़ती नहीं आवाज़ कोई
एतिबार-ए-नज़र करें कैसे
हो गए चुप हमें पागल कह कर
यही रस्ता है अब यही मंज़िल
वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं
हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए
उन का या अपना तमाशा देखो