दुनिया ने हर बात में क्या क्या रंग भरे
हम सादा औराक़ उलटते जाते हैं
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कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
तुम ज़माने की राह से आए
वक़्त के पास हैं कुछ तस्वीरें
हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
इस कार-ए-गह-ए-रंग में हम तंग नहीं क्या
तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया
इस बदलते हुए ज़माने में
आस्तीं में साँप इक पलता रहा
ख़ुद-फ़रेबी सी ख़ुद-फ़रेबी है
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे