तुम ज़माने की राह से आए
वर्ना सीधा था रास्ता दिल का
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एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
तेरे ग़म से तो सुकून मिलता है
'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँ
तुझ को देखा तिरे वादे देखे
यूँ भी होने का पता देते हैं
आस्तीं में साँप इक पलता रहा
हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो
मरहला दिल का न तस्ख़ीर हुआ
दिल में जब बात नहीं रह सकती