दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है
काम मुश्किल है तो रस्ता देखो
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एतिबार-ए-नज़र करें कैसे
मरहला दिल का न तस्ख़ीर हुआ
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए
जुनूँ की राख से मंज़िल में रंग क्या आए
हम कहाँ आइना ले कर आए
क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत
दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे
हर नए हादसे पे हैरानी
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
तेरे ग़म से तो सुकून मिलता है
इस बदलते हुए ज़माने में