दिल की दीवार गिर गई शायद
अपनी आवाज़ कान में आई
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'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँ
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए
बंद कलियों की अदा कहती है
वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
यूँ भी होने का पता देते हैं
एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा
दुनिया ने हर बात में क्या क्या रंग भरे
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो