किसी के दिल में उतरना है कार-ए-ला-हासिल
कि सारी धूप तो है आफ़्ताब से बाहर
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ज़िंदगी से मुकालिमा
तुम्हारे ब'अद जो बिखरे तो कू-ब-कू हुए हम
आईना देखते हो
राहदारी में गूँजती नज़्म
तमाम उम्र हवा की तरह गुज़ारी है
अली-बाबा कोई सिम-सिम
ज़िंदगी अब तू मुझे और खिलौने ला दे
बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज भी कैसे
बर्ग-ए-सदा को लब से उड़े देर हो गई
उसी ने चाँद के पहलू में इक चराग़ रखा
अब तो कुछ भी याद नहीं
हम एक दिन निकल आए थे ख़्वाब से बाहर