धुआं Poetry (page 19)

इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त

अब्दुल्लाह जावेद

ज़ात उस की कोई अजब शय है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

कुछ तौर नहीं बचने का ज़िन्हार हमारा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

दूर बस्ती पे है धुआँ कब से

अब्दुल हमीद

बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब

अब्दुल हमीद

उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया

अब्दुल हमीद

दिल में जो बात है बताते नहीं

अब्दुल हमीद

दम-ए-वापसीं

अब्दुल अहद साज़

सवाल बे-अमान बन के रह गए

अब्दुल अहद साज़

बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना

अब्दुल अहद साज़

दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता

अब्बास ताबिश

फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं

अब्बास कैफ़ी

आदमी को चाहिए तौफ़ीक़ चलने की फ़क़त

आज़िम कोहली

ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले

आज़िम कोहली

धुआँ उठ रहा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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