धुआं Poetry (page 2)

खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़्वाब आईना कर रही है दिल में

यूसुफ़ हसन

चुप रहूँ कैसे मैं बर्बाद-ए-जहाँ होने तक

यूनुस ग़ाज़ी

दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ

योगेन्द्र बहल तिश्ना

निगाह-ए-बद-गुमाँ है और मैं हूँ

याक़ूब उस्मानी

दिलों में दर्द ही उतना कशीद रक्खा है

याक़ूब तसव्वुर

धीरे धीरे सर में आ कर भर गया बरसों का शोर

याक़ूब आमिर

क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी

याक़ूब आमिर

तर्ग़ीब

वज़ीर आग़ा

वो मुझ को क्या बताना चाहता है

वसीम बरेलवी

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता

वसीम बरेलवी

चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो

वसीम बरेलवी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें

वाली आसी

यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है

वाली आसी

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

तवाना ख़ूबसूरत जिस्म

वहीद अख़्तर

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

आँख जो नम हो वही दीदा-ए-तर मेरा है

वहीद अख़्तर

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

जिस भी जगह देखी उस ने अपनी तस्वीर हटा ली थी

विजय शर्मा अर्श

उठ रहा है दम-ब-दम डर का धुआँ

वसाफ़ बासित

अंदरूँ नींद का इक ख़ाली मकाँ होता था

वसाफ़ बासित

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