धुआं Poetry (page 3)

24-वाँ साल

वर्षा गोरछिया

भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

त्रिपुरारि

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

दिल है बेताब नज़र खोई हुई लगती है

तिलक राज पारस

इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में

तौसीफ़ तबस्सुम

हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर

मीर तस्कीन देहलवी

तेरी वफ़ा का हम को गुमाँ इस क़दर हुआ

तासीर सिद्दीक़ी

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

पाँव जब हो गए पत्थर तो सदा दी उस ने

तारिक़ क़मर

ढलती रात

तख़्त सिंह

मिरे ख़याल का साया जहाँ पड़ा होगा

तख़्त सिंह

हर अश्क तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

तख़्त सिंह

एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा है

तख़्त सिंह

शिकवा न हो तसलसुल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहे

तजम्मुल हुसैन अख़्तर

शहर को चोट पे रखती है गजर में कोई चीज़

तफ़ज़ील अहमद

ज़वाल की आख़िरी चीख़

तबस्सुम काश्मीरी

लुत्फ़ ये है जिसे आशोब-ए-जहाँ कहता हूँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुनीर

सिगरेट और पान का मुकालिमा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी

सय्यद अमीन अशरफ़

तेरे मिलने का आख़िरी इम्कान

स्वप्निल तिवारी

शिद्दत-ए-कर्ब से कराह उठा

सालेह नदीम

सोज़-ए-ग़म भी नहीं फ़ुग़ाँ भी नहीं

सुरूर बाराबंकवी

कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब

सुरूर बाराबंकवी

मेरे और अपने दरमियाँ उस ने

सुरेन्द्र शजर

मुस्तक़िल दर्द का सैलाब कहाँ अच्छा है

सूरज नारायण मेहर

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है

सूफ़ी तबस्सुम

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