धुआं Poetry (page 18)

अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

आग़ाज़ बरनी

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने

अफ़ज़ल गौहर राव

ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले

अफ़ज़ल गौहर राव

हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया

अफ़ज़ल गौहर राव

ग़मों की धूप में मिलते हैं साएबाँ बन कर

अफ़ज़ल इलाहाबादी

टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था

आफ़ताब शम्सी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हम्माम के आईने में शब डूब रही थी

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

फ़ैज़

आदिल मंसूरी

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले

अदा जाफ़री

वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी

अदा जाफ़री

ख़ामोश इस तरह से न जल कर धुआँ उठा

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं

अबु मोहम्मद सहर

परिंदे फ़ज़ाओं में फिर खो गए

अबरार आज़मी

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

अबरार आज़मी

ज़मीं पे आग फ़लक पर धुआँ दिखाई दिया

अबरार आज़मी

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

अबरार आज़मी

बहुत तज़्किरा दास्तानों में था

अबरार आज़मी

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा

आबिद मुनावरी

उस से कहना की धुआँ देखने लाएक़ होगा

अभिषेक शुक्ला

देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है

अब्दुस्समद ’तपिश’

इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे

अब्दुल्लाह कमाल

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

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