दिल Poetry (page 201)

मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा

हातिम अली मेहर

कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम

हातिम अली मेहर

जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा

हातिम अली मेहर

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हातिम अली मेहर

इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा

हातिम अली मेहर

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

हातिम अली मेहर

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

हातिम अली मेहर

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

बुतों का सामना है और मैं हूँ

हातिम अली मेहर

अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त

हातिम अली मेहर

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

हातिम अली मेहर

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

हातिम अली मेहर

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें

हस्तीमल हस्ती

वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है

हस्तीमल हस्ती

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

हस्तीमल हस्ती

चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं

हस्तीमल हस्ती

ये ख़ाकी आग से हो कर यहाँ पे पहुँचा है

हस्सान अहमद आवान

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

दरिया की तरफ़ देख लो इक बार मिरे यार

हस्सान अहमद आवान

रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता

हसरत शरवानी

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

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