दिल Poetry (page 408)

कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए

आसी ग़ाज़ीपुरी

इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ

आसी ग़ाज़ीपुरी

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

आसी ग़ाज़ीपुरी

एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं

आसी ग़ाज़ीपुरी

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

आसी ग़ाज़ीपुरी

'आशुफ़्ता' अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

वापसी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं

आस मोहम्मद मोहसिन

उतारा दिल के वरक़ पर तो कितना पछताया

आनिस मुईन

जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना

आनन्द सरूप अंजुम

कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है

आनन्द सरूप अंजुम

हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक

आनन्द सरूप अंजुम

हर दुआ होगी बे-असर न समझ

आनन्द सरूप अंजुम

तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं

आलोक श्रीवास्तव

मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया

आलोक श्रीवास्तव

धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है

आलोक श्रीवास्तव

दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें

आले रज़ा रज़ा

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

आले रज़ा रज़ा

मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है

आले रज़ा रज़ा

जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो

आले रज़ा रज़ा

हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ

आले रज़ा रज़ा

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

आले रज़ा रज़ा

हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं

आल-ए-अहमद सूरूर

वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे

आल-ए-अहमद सूरूर

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

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