दिल Poetry (page 407)

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

इतना ही बहुत है कि ये बारूद है मुझ में

आतिफ़ कमाल राना

बहार-ए-ज़ख़्म-ए-लब-ए-आतिशीं हुई मुझ से

आतिफ़ कमाल राना

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन

आसी उल्दनी

नसरी नज़्म

आसी रिज़वी

उन को मैं ने अपना कहा है

आसी रामनगरी

तुझे हम याद हर-दम ऐ सितम ईजाद करते हैं

आसी रामनगरी

सरशार हूँ साक़ी की आँखों के तसव्वुर से

आसी रामनगरी

सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए

आसी रामनगरी

क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा

आसी रामनगरी

क्या मसर्रत है पूछिए हम से

आसी रामनगरी

ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है

आसी रामनगरी

दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है

आसी रामनगरी

दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए

आसी रामनगरी

धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

आसी रामनगरी

बाब-ए-क़फ़स खुलने को खुला है

आसी रामनगरी

मैं आख़िर आदमी हूँ कोई लग़्ज़िश हो ही जाती है

आसी करनाली

रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता

आसी करनाली

दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल

आसी ग़ाज़ीपुरी

दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है

आसी ग़ाज़ीपुरी

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

आसी ग़ाज़ीपुरी

ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते

आसी ग़ाज़ीपुरी

वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है

आसी ग़ाज़ीपुरी

उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था

आसी ग़ाज़ीपुरी

तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ

आसी ग़ाज़ीपुरी

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना

आसी ग़ाज़ीपुरी

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर

आसी ग़ाज़ीपुरी

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