दिल Poetry (page 405)

यूँ तो शीराज़ा-ए-जाँ कर के बहम उठते हैं

अब्बास ताबिश

ये तो नहीं फ़रहाद से यारी नहीं रखते

अब्बास ताबिश

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है

अब्बास ताबिश

वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता

अब्बास ताबिश

तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप

अब्बास ताबिश

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

अब्बास ताबिश

शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर

अब्बास ताबिश

साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है

अब्बास ताबिश

पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है

अब्बास ताबिश

निगाह-ए-अव्वलीं का है तक़ाज़ा देखते रहना

अब्बास ताबिश

मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है

अब्बास ताबिश

कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है

अब्बास ताबिश

कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है

अब्बास ताबिश

हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है

अब्बास ताबिश

हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता

अब्बास ताबिश

डूब कर भी न पड़ा फ़र्क़ गिराँ-जानी में

अब्बास ताबिश

दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए

अब्बास ताबिश

दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता

अब्बास ताबिश

चश्म-ए-नम-दीदा सही ख़ित्ता-ए-शादाब मिरा

अब्बास ताबिश

चराग़-ए-सुब्ह जला कोई ना-शनासी में

अब्बास ताबिश

चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया

अब्बास ताबिश

अजीब तौर की है अब के सरगिरानी मिरी

अब्बास ताबिश

अजब सौदा-ए-वहशत है दिल-ए-ख़ुद-सर में रहता है

अब्बास ताबिश

अब मोहब्बत न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है

अब्बास ताबिश

अब अधूरे इश्क़ की तकमील ही मुमकिन नहीं

अब्बास ताबिश

आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है

अब्बास ताबिश

जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

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