दिल Poetry (page 202)

शेर दर-अस्ल हैं वही 'हसरत'

हसरत मोहानी

सभी कुछ हो चुका उन का हमारा क्या रहा 'हसरत'

हसरत मोहानी

मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल

हसरत मोहानी

मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'

हसरत मोहानी

इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम

हसरत मोहानी

छेड़ा है दस्त-ए-शौक़ ने मुझ से ख़फ़ा हैं वो

हसरत मोहानी

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

हसरत मोहानी

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

हसरत मोहानी

उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों

हसरत मोहानी

उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है

हसरत मोहानी

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

हसरत मोहानी

सितम हो जाए तम्हीद-ए-करम ऐसा भी होता है

हसरत मोहानी

रोग दिल को लगा गईं आँखें

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके

हसरत मोहानी

क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया

हसरत मोहानी

निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे

हसरत मोहानी

न सूरत कहीं शादमानी की देखी

हसरत मोहानी

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को

हसरत मोहानी

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

मुदावा-ए-दिल-ए-दीवाना करते

हसरत मोहानी

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