प्रार्थना Poetry (page 4)

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए

वहीद अख़्तर

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

वहीद अख़्तर

मेरे दुख की दवा भी रखता है

विशाल खुल्लर

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

महताब फ़ज़ा के आइने में

वसाफ़ बासित

मुमकिन नहीं है अपने को रुस्वा वफ़ा करे

वफ़ा बराही

हक़ीक़त से जो आश्ना हो गया

वफ़ा बराही

जब भी पेड़ों पे समर जागता है

उमर फ़रहत

जीना है तो जीने की पहली सी अदा माँगो

तुफ़ैल अहमद मदनी

उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था

त्रिपुरारि

पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ

त्रिपुरारि

कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी

त्रिपुरारि

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया

तिलोकचंद महरूम

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

तिलोकचंद महरूम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ

तौक़ीर अहमद

किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

ख़्वाब पहले ले गया फिर रत-जगा भी ले गया

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

तुम ग़ैर से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ

मीर तस्कीन देहलवी

तू क्यूँ पास से उठ चला बैठे बैठे

मीर तस्कीन देहलवी

अच्छे लगोगे और भी इतना किया करो

तारिक़ राशीद दरवेश

अजब ग़रीबी के आलम में मर गया इक शख़्स

तारिक़ क़मर

न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी

तारिक़ क़मर

अपने दुखों का हम ने तमाशा नहीं किया

तारिक़ मतीन

लहू को पालते फिरते हैं हम हिना की तरह

तारिक़ मसऊद

कुछ दूर तक तो इस की सदा ले गई मुझे

तारिक़ बट

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