दोस्त Poetry (page 4)

हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है

विश्वनाथ दर्द

करना है कार-ए-ख़ैर तो फिर सर न देखना

विश्मा ख़ान विश्मा

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

विकास शर्मा राज़

तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर

वफ़ा मलिकपुरी

एक दो अश्क बहाती है चली जाती है

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

मोहब्बत

उरूज जाफ़री

थम ज़रा वक़्त-ए-अजल दीदार-ए-जाँ होने लगा

उम्मीद ख़्वाजा

चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्त

उम्मीद फ़ाज़ली

हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख

उमैर मंज़र

पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ

त्रिपुरारि

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

तिलोकचंद महरूम

हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं

तिलोकचंद महरूम

फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली

तसनीम फ़ारूक़ी

वो कोई सच था या झूटा कोई फ़साना था

तासीर सिद्दीक़ी

भटकें हैं आप के लिए तन्हा कहाँ कहाँ

तरुणा मिश्रा

अश्क टपकें लाख होंटों की हँसी जाती नहीं

तरुणा मिश्रा

तू मेरा दोस्त मिरा यार है नहीं है क्या

तरकश प्रदीप

ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ

तारिक़ क़मर

हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए

तारिक़ नईम

इश्क़ क्या शय है दोस्त क्या कहिए

तनवीर गौहर

बे-कैफ़ मसर्रत भी मुसीबत सी लगे है

तालिब चकवाली

यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ

तालिब बाग़पती

यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ

तालिब बाग़पती

हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते

तालीफ़ हैदर

हर अश्क तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

तख़्त सिंह

ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज

ताजवर नजीबाबादी

जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है

ताजदार आदिल

तुम कोई इस से तवक़्क़ो' न लगाना मरे दोस्त

तैमूर हसन

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