दोस्त Poetry (page 5)

ये चार दिन की रिफ़ाक़त भी कम नहीं ऐ दोस्त

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

लुत्फ़ ये है जिसे आशोब-ए-जहाँ कहता हूँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हर सितम लुत्फ़ है दिल ख़ूगर-ए-आज़ार कहाँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

नहीं कोई दोस्त अपना यार अपना मेहरबाँ अपना

ताबाँ अब्दुल हई

मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ

सय्यद ज़मीर जाफ़री

थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हम ने सौ सौ तरह बनाई बात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हम को हवस-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर नहीं है

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

तर्क-ए-उल्फ़त में कोई यकता न था

सय्यद मुनीर

मिज़ाज-ए-हुस्न में यारब तू प्यार पैदा कर

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

बस का सफ़र

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

जब मैं रोया हूँ वो रोए हैं ये उल्फ़त मेरे साथ

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

ये कज-अदाई ये ग़म्ज़ा तिरा कभी फिर यार!

सय्यद काशिफ़ रज़ा

बे-जुर्म-ओ-बेगुनाह ग़रीब-उल-वतन किया

सय्यद अाग़ा अली महर

वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था

सय्यद आबिद अली आबिद

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

मैं नहीं कहता हर इक चीज़ पुरानी ले जा

सुरेन्द्र शजर

आईना देखना

सूरज नारायण मेहर

तुझ से बिछड़ूँ तो ये ख़दशा है अकेला हो जाऊँ

सुलेमान ख़ुमार

बीमार सा है जिस्म-ए-सहर काँप रहा है

सुलेमान ख़ुमार

ग़म-कदे वो जो तिरे गाम से जल उठते हैं

सुलैमान अरीब

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